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उत्तराखंड की राजनीति में आज फिर शतरंज की बिसात पर एक महारथी ने चाल ऐसी चली कि विरोधियों की सारी गोटियां धड़ाम हो गईं। जी हां, बात हो रही है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की, जिन्होंने अपनी सधी हुई रणनीति से न केवल विरोधी खेमा चित कर दिया, बल्कि यह भी साफ कर दिया कि हाईकमान की आंखों के तारे आज भी वही हैं।
महेंद्र भट्ट की वापसी, विरोधियों की विदाई! महेंद्र भट्ट दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बन गये है, राजनीतिक , नामांकन के मौके पर सभी सांसद, विधायक और पदाधिकारी जिस तरह एकजुट दिखे, उसने ये साफ कर दिया कि ये कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं थी। ये दिल्ली दरबार की मुहर लगी हुई ‘राजनीतिक स्वीकृति’ थी और इस स्वीकृति के असली वास्तुकार थे खुद पुष्कर सिंह धामी
सियासी दिमाग से बिछी बिसात, शह भी, मात भी !
खबर ये भी है कि पुष्कर ने हाईकमान को दो नाम दिए थे – एक पूर्व ब्राह्मण मुख्यमंत्री और दूसरा महेंद्र भट्ट। मगर दिल्ली ने पूर्व सीएम को साइडलाइन कर दिया और धामी की ‘फेवरेट लिस्ट’ से ही भट्ट के नाम पर मुहर लगा दी, यानी ये सिर्फ संगठनात्मक नियुक्ति नहीं, बल्कि विरोधियों को करारा जवाब था।धामी विरोधी लॉबी की हार ‘प्रॉक्सी सीएम’ बनने का सपना टूटा
सूत्रों के अनुसार हाल ही में हल्द्वानी और दिल्ली में जो रणनीतियां बनीं, जिनमें कुछ पूर्व दिग्गज, असंतुष्ट नेता और “प्रॉक्सी मुख्यमंत्री” बनने के ख्वाब देख रहे चेहरों ने साजिशें रचीं, उनका सपना महज सपना ही रह गया। पुष्कर ने मोर्चा खुद संभाला, दिल्ली दरबार तक गर्म हुई फाइलों को ठंडा किया, और नतीजा सामने है, महेंद्र भट्ट की वापसी के साथ धामी की ताकत का दोबारा प्रदर्शन
पुष्कर का जादू – आज भी हाईकमान पर कायम !
ये कहानी सिर्फ एक नामांकन की नहीं, बल्कि एक बार फिर पुष्कर सिंह धामी के करिश्मे और केंद्र की पसंद का सर्टिफिकेट है। राजनीतिक हवाएं चाहे जितनी फैलाई जाएं, मोदी-शाह की ‘पसंदीदा पिच’ पर खेलने वाला बल्लेबाज आज भी धामी ही हैं।, धामी का दम फिर दिखा – विरोधियों की सियासी चालें धरी की धरी रह गईं!”
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कृष्णा वार्ता, गदरपुर