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गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु और विश्व मानवता के प्रतीक माने जाते हैं। इस वर्ष 5 नवंबर को गुरु नानक जयंती मनाई जाएगी, जो उनके प्रकाश पर्व के रूप में समर्पित है। उन्होंने अपने जीवन से यह संदेश दिया कि ईश्वर एक है और वह हर हृदय में बसता है। उनके उपदेशों में सत्य, करुणा, समानता और सेवा का गहरा भाव निहित है। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, पाखंड और जाति-पांति के भेदभाव का विरोध किया तथा प्रेम और एकता के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा दी। गुरु नानक देव जी का सम्पूर्ण जीवन ईश्वर-भक्ति, सत्यनिष्ठा और मानव कल्याण के लिए समर्पित रहा। उनकी शिक्षाएं आज भी मानवता के लिए मार्गदर्शक प्रकाश बनी हुई हैं।

गुरु नानक देव जी के पिता मेहता कालू चंद स्थानीय राजस्व अधिकारी थे, जबकि माता तृप्ता देवी धार्मिक और दयालु स्वभाव की थीं। उनकी बड़ी बहन बेबे नानकी ने बचपन से ही उनमें आध्यात्मिकता और भक्ति की भावना जागृत की। गुरु नानक देव जी का विवाह माता सुलखनी जी से हुआ, जो एक धर्मनिष्ठ और सौम्य स्वभाव की महिला थीं। विवाह के बाद उनके दो पुत्र हुए जिनका नाम श्रीचंद और लक्ष्मीदास रखा गया। उन्होंने सदैव ईमानदारी, सत्य और करुणा का पालन किया।

गुरु नानक देव जी का बचपन अत्यंत अद्भुत और प्रेरणादायक था। वे छोटी सी उम्र से ही गहन चिंतनशील और ईश्वर-भक्त प्रवृत्ति के थे। जहां उनकी आयु के बच्चे खेलकूद में आनंद लेते थे, वहीं नानक जी सृष्टि, सत्य और आत्मा के रहस्यों पर विचार करते थे। पांच वर्ष की आयु में उन्होंने शिक्षा आरंभ की, परंतु जल्दी ही यह अनुभव किया कि वास्तविक ज्ञान केवल अक्षरों में नहीं, बल्कि मानवता की सेवा, करुणा और भक्ति में है। वे कहते थे कि जो व्यक्ति सच्चे हृदय से ईश्वर को जानने का प्रयास करता है, वही वास्तव में ज्ञानी कहलाता है।


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कृष्णा वार्ता, गदरपुर

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