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कृष्णा वार्ता गदरपुर उत्तराखंड

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भारत की सांस्कृतिक धरोहर में छठ पूजा एक ऐसा पर्व है, जो आस्था, अनुशासन और पर्यावरणीय चेतना का अद्भुत संगम है। यह पर्व इस वर्ष 25 से 28 अक्टूबर 2025 तक मनाया जाएगा।
      दिवाली के छह दिन बाद आने वाला यह पर्व उत्तर भारत में विशेष पहचान रखता है,लेकिन अब इसकी गूंज महानगरों और विदेशों तक में भी सुनाई देने लगी है।

      चार दिन चलने वाले इस व्रत की शुरुआत 25 अक्टूबर से शुरूवात
नहाय-खाय से होगी। दूसरे दिन खरना में व्रति निर्जला उपवास रखेंगे और संध्या में गुड़ की खीर, रोटी और फलों का प्रसाद ग्रहण करेंगे। तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण होगा।


     छठ पूजा की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी सादगी। इसमें भव्य सजावट या अपार धन खर्च की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि स्वच्छता, सात्त्विकता और सामूहिकता ही मुख्य आधार हैं। मोहल्लों और घाटों पर लोगों का सहयोग इस पर्व को सामाजिक एकता का प्रतीक बना देता है।

वैज्ञानिक दृष्टि से भी छठ का महत्व है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी के समय सूर्य की किरणों का प्रभाव अधिक होता है। जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यही कारण है कि इसे प्रकृति और पर्यावरण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने वाला पर्व कहा जाता है।

आज छठ पूजा गाँवों से निकलकर महानगरों तक पहुँच चुकी है। वास्तव में छठ पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी लोकसंस्कृति, प्रकृति-प्रेम और सामाजिक एकजुटता का जीवंत प्रतीक है।

इस छठ पर आइए, हम सब मिलकर सूर्य देव और छठ मैया के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें और संकल्प लें कि प्रकृति और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाएं।


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कृष्णा वार्ता, गदरपुर

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