Spread the love

कृष्णा वार्ता गदरपुर उत्तराखंड

9917322413

देहरादून। (संवाद सूत्र )मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा विधानसभा में मदरसा बोर्ड समाप्त कर अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण गठित करने का विधेयक पारित कराने के बाद उत्तराखंड की राजनीति गरमा गई है। देर शाम से ही यह मुद्दा सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स (पूर्व में ट्विटरद्) पर छाया रहा। धामी सरकार के इस बड़े फैसले पर देशभर के लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएँ दीं और #Dhami_Attcks_ Madrsa_Board हैशटैग ने करीब दो घंटे तक लगातार ट्रेंड किया। धामी सरकार का यह कदम ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि देश में पहली बार किसी राज्य में अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन होने जा रहा है। इसमें मुस्लिम समाज के साथ जैन, पारसी, ईसाई और सिख समुदाय को भी प्रतिनिधित्व मिलेगा। अब तक मदरसा बोर्ड के माध्यम से केवल मुस्लिम समाज को ही सरकारी योजनाओं और सुविधाओं का लाभ मिलता रहा था। सरकार का तर्क है कि नए प्राधिकरण से सभी अल्पसंख्यक समुदायों को शिक्षा के क्षेत्र में समान अवसर और अधिकार सुनिश्चित होंगे। सदन में विधेयक पारित होने के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर बहस छिड़ गई। समर्थकों ने इसे शिक्षा के क्षेत्र में समानता की दिशा में ऐतिहासिक कदम करार दिया और इसे नए युग की शुरुआत बताया। दूसरी ओर विरोधियों ने इसे राजनीतिक लाभ लेने की कवायद बताते हुए मुस्लिम समाज के खिलाफ निर्णय ठहराया। सोशल मीडिया पर हजारों लोगों ने अपनी राय रखी और उत्तराखंड की राजनीति को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया। राष्ट्रीय राजनीति पर भी इस फैसले की गूंज सुनाई देने लगी है। दिल्ली से लेकर लखनऊ तक सियासी गलियारों में इस पर बहस हो रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि देवभूमि उत्तराखंड में शुरू हुआ यह प्रयोग आने वाले समय में देश की अल्पसंख्यक शिक्षा व्यवस्था के लिए मॉडल बन सकता है। कई जानकारों ने यहां तक दावा किया है कि आने वाले महीनों में उत्तराखंड के मदरसे बंद हो जाएंगे। इसी अटकल ने सोशल मीडिया की बहस को और गरमा दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सदन में स्पष्ट किया कि सरकार का मकसद किसी भी समुदाय को हाशिये पर धकेलना नहीं है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का दायरा सबके लिए समान और आधुनिक होना चाहिए। धामी का कहना था कि अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण से सभी समुदायों की नई पीढ़ी को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने में मदद मिलेगी। धामी सरकार के इस निर्णय ने न केवल उत्तराखंड बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी हलचल पैदा कर दी है। समर्थक इसे शिक्षा में सुधार की दिशा में साहसिक पहल मान रहे हैं, जबकि विरोधियों के अनुसार यह निर्णय केवल ध्रुवीकरण की राजनीति है। सोशल मीडिया पर जारी तीखी बहस ने साफ कर दिया है कि यह मुद्दा आने वाले समय में उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश की सियासत में अहम भूमिका निभा सकता है।


Spread the love
किसी भी प्रकार का समाचार व विज्ञापन के लिए संपर्क करें -
संपादक- सुरेंद्र चावला उर्फ राजू - 9917322413
रिपोर्टर -सागर धमीजा - 9837877981
कृष्णा वार्ता, गदरपुर

error: Content is protected !!